ताला ऐसा मढ़ा है तूने ,क्या होगा ,क्या सुखशाला ?
मौलिकता जन-मन की होगी ,क्या सब है तेरे ही ऊपर।
कौन परम्परा तूने ढोया ,सृष्टि का भी विध तोडा।
तूने किसका साथ दिया है ,जिसे बना उसको छोड़ा।
तेरा हाल समझ लो प्यारे भीष्म पितामह की होगी।
मृत्यु शैय्या पड़ा हुआ तू मृत्यु का मांगेगा भीख।
नहीं मिलेगा दान-पानी ,बात यही सत्यासत्य है।
चल तू जा अब भाग यहाँ से दूर कहीं जाकर बस जा।
तेरा कोई काम नहीं है ,ढोंगी ,लोभी ,मतवाला।
तू भी दे प्रमाण जन-मन को,क्या-क्या सही किया तूने।
मालूम सब है क्या करता था,और कर रहा अब क्या है ?
बस इसका सबूत नहीं ,बरी हुआ तू जा भाग जा।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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