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Tuesday, November 22, 2016

यह अँधेरा , दृष्टियों का-2

     यह अँधेरा , दृष्टियों का,
     दृष्टिमय अंधे बने हम। 

काट चुटकी-देश हित में ,
आहूत कर सब ,सब सभी। 
वह बताएगा की कितना ,
सांस लेना है तुम्हे। 
वह सिखाएगा की कितना ,
दूर चलना है तुम्हें। 
यारों वह तो ,
कल्पना में जी रहा। 
और हमको सी रहा। 
माना यारों लोग कुछ हैं ,
जिनका निज हित मान है। 
पर उन्हीं -कुछ लोग चलते ,
हम पिसें-क्या धर्म है?
कर्म से बनता है इंसा ,
कर्म ही सब कुछ यहाँ। 
फिर बताओ ,दण्ड कैसा ,
बिन किये हम भुगतते। 
सरफ़रोशी  तमन्ना ,
तुम बताओ,सब में है। 
पर सिखाता वो हमे है ,
देश प्रेमी तुम बनो। 
भावना की तूलिका से-
भाव को वह बांधकर ,
क्या करेगा -पता तो हो ,
हम भी तो जनतंत्र हैं ?  (शेष कल )   

उमेश चंद्र श्रीवास्तव- 





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