A poem of Umesh chandra srivastava
हिमंग शुभ्य भारती ,तरंग ,उमंग उकारती।
हिमंग शुभ्य भारती ,तरंग ,उमंग उकारती।
विहंग दंग देखते , तिरंग ज्ञान भारती।
कहे चलो ,कहे चलो, मिटे जनों की कालिमा।
प्रफुल्लित होये लालिमा , प्रसन्न झूमते चलो।
कहे चलो, कहे चलो।
बिगत तो बीत अब गया, आगत की सोच ज्ञानती।
निर्विघ्न मार्ग हो प्रशस्त , सुधि बने सभी ये जन।
यही है आश भारती ,कहे चलो ,कहे चलो।
नगर-नगर ,डगर-डगर ,चमन हो गुल चषकमयी।
गमक में उसके झूमते , चले नगर -नगर सभी।
कहें सभी-सभी यहाँ ,है भारती , है भारती।
कहे चलो कहे चलो।
प्रताप ,उनका शौर्य है ,उल्लास उनकी दृष्टि है।
सुपुष्ट देहं धारियों , स्वदेश के पुजारियों।
कहे चलो , कहे चलो ,तिरंगा मेरी शान है।
यह भारतीय की शान है ,उठा इसे कहे चलो।
कहे चलो , कहे चलो।
न कोई सर उठा सका , न पार कोई पा सका।
भुजंग जितने आ डटे , हटा, हटो कहे चलो।
कहे चलो ,कहे चलो ,सब प्रेम भाव पास हो।
बस समृद्धि की आश हो ,सुसंस्कृत हों जन सभी।
कहे चलो ,कहे चलो।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
A poem of Umesh chandra srivastava
बहुत-बहुत शुभकामनाएं, नमन
ReplyDeletemeera.bharati.poetry@gmail.com
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