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Wednesday, November 16, 2016

राजनीती की दुक्कड़यी में -2

देश काल की दिशा बदलना ,बच्चों वाला खेल नहीं। 
बातधनी क्या ,बातकही में सत्य-सत्य तुम बस बोलो ?
छू मन्तर का खेल नहीं यह ,जनता ने कुर्सी दी है। 
बिन उनके अरमान को जने ,क्या यह राजतन्त्र नहीं है ?
अपने मुहं से अपनी करनी ,झूठ को सच ,सच को झूठ। 
बड़े मसीहा बनने वाले ,तुमको क्या परिवार पता?
बिना प्रसव के महिला कैसे ,बतलायेगी प्रसव पीड़ा ?
अपने हित में अंधे हो कर ,कर डाला छलमय फैसला। 
अरे चितेरक़ भविष्य देश का दूजे के ही बल होगा। 
जन-मन का कोई भान नहीं है सुना दिया हिटलर फरमान। 
ढाई बरस बचा है ,करलो जो चाहत भी तुमको हो ?
आएंगे आगे भी तुमसे कुछ अच्छा करने वाले। 
कहाँ से रैली होती तेरी ,कहाँ से पब्लिक आती है? 
सब जन जाने रैली में पब्लिक भीड़ कैसे जुटती। 
अरे विशारद बुद्धि देवता तुमको बरमबार प्रणाम। (बाकी कल )



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -




 

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