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Friday, November 18, 2016

चर्चाएं तो प्रबल हो गयीं

चर्चाएं तो प्रबल हो गयीं,किसकी-किसकी बात करे। 
मोहजाल में फंसे परिंदे ,आसमान से भाग रहे। 
बातों में बतधरी कहाँ है ,सभी मुलायम बनते हैं। 
क्रोध,रोष 'औ' बल प्रयोग पर , जीवन का पथ धरते हैं। 
अरे उठो संयत बोलो तुम ,बहुत बड़ा तोरण आया। 
तोरण कैसे बना ,बढ़ा वह ,उसपर कोई बात नही। 
कहा,किया ,औ' पैतरबाजी ,तोरण की है प्रमुख कला। 
नैसर्गिक जीवन में यारों ,चर्चाओं का मोल कहाँ। 
दिया उन्हें अब पिस जाओ ,गेहूं में घुन की तरह। 
गेहूं पिसा प्रदर्शित होता ,घुन का तो अस्तित्व कहाँ। 
माना चर्चा में वह सब कुछ ,पर संयत का भाव कहाँ। 
मन के आवेगों के आगे , सच्चों का अस्तित्व कहाँ। 
बस वो बोले , हम भी बोले ,वह तो प्रबल चितेरक़ हैं। 
तुम नाहक चर्चा में काहे ,खपा रहे अपनी ऊर्जा। 
उनके पास तो हत्था-डोरी ,तेरे पास भला क्या है?
वह तो सत्य नहीं देखेंगे  ,पर वह सत्य सुनाएंगे। 
तुम बस चलो सत्य भूमि पर ,बस इतना बतलायेंगे। 
कसम-वसम उदहारण उनका ,यह तो बेतुक की बातें। 
आगंतुक बनके आये हो ,आगंतुक बन रहो यहाँ। 
चर्चाओं में नाहक पड़ कर ,अपना नाम उजागर क्यों ?
जीवन की अमूल धारा में ,दूजा भी पैतरा चला। 
चुप हो जाओ वरना तुमको ,भूतल से करदेंगे विमुख। 
मुहं लटकाये घाट -घाट पर ,अब खुद जाकर मरो खपो। 

उमेश चंद्र श्रीवास्तव -







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