जीवन मिला तो जीना इसे है।
जीने की भी तो बहुत सी कला है।
पकड़ हाथ चल दो -जो साथी बने हैं।
करम से जो अपने पैर पे खड़े हैं।
उन्हें साथ करके-आगे बढ़ो तुम।
डगर सत्य होगा, करम जो सही।
यहाँ भाग्य कुछ भी,करम के बिना क्या?
कायरों की बातें ,इसे त्याग बढ़ लो।
वही बात सच है ,कुटुंब से मिला जो।
ज़माने की चादर में मत ही पड़ो तुम।
करम बेल पथ है ,करम ही सभी कुछ।
इसी बस कला को ,जीवन में धर लो।
मिलेगा जो चाहो ,नहीं कोई बाधा।
डगर एक जीवन का , इसको बना लो।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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