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Tuesday, November 15, 2016

राजनीती की दुक्कड़यी में

राजनीती की दुक्कड़यी में सज्जनता का भाव कहाँ ?
जो भी कहो वही नहीं करना,उठा देख लो चाणक्य नीति। 
जिसकी उपमा सदा देते सब, कुटूनीति का पुरोधा रहा ,
उठा देख लो उसकी कहनी-करनी में क्या फर्क रहा ?
अर्थ तंत्र पर चोट कर गए ,अब आगे क्या बोलो गे ?
अगर इशारा सही हुआ तो,अब आगे क्या खोलो गे। 
देश हितों के बने चितेरक अपना भी इतिहास कहो ?
बिना प्रूफ के बहुत सी बातें ,सच-सच बोलो सही कहो ?
ईमानदारी का ढोंग रचा कर ,जनता को भरमाते क्यों?
पैसा मेरा क्या,कैसे ,कितना निकालें बतलाओगे तुम ?
तुम्हीं कमा के दे गए मुझको लगता है कुछ ऐसा ही। 
वह रे मेरे शुभ चिंतक तुम ,धन्य-धन्य ही तुम्हे प्रणाम। 
नोट बदलने से सब कुछ है तो आगे की शपथ ,कहो ?
तेरे बाद जो भी आएगा ,क्या वह नोट नहीं बदलेगा?
वाह रे राजनीती के परचम कुछ तो चिंतन मनन करो ?
आवेशों में काम बिगड़ता ,सबको तुमने धो डाला ? (शेष कल.....)


उमेश चंद्र श्रीवास्तव-











 

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