अर्थ क्रांति का दौर आ गया ,पैसा ले कर दौड़ रहे-सब।
नन्हें-मुन्हें,बूढ़े ,जवान ,उधर बड़ों को साँप सूंघ गया।
जिनके पास है कलुषित माल ,ताल ठोक कर गाल बजाकर।
खिसियानी बिल्ली से हंसते ,चाल उन्हीं की कम से कमतर,
बड़े नोट का टोटा पड़ गया , बैंक-डाकघरों में भरमार।
कहाँ पे जाएँ,क्या-क्या लाएं,पैसों फुटकर की है किल्लत।
घूमा-फिरा के केंद्र बोलता,थोड़ा धैर्य करो तो जन-मन।
नए दौर में नया रुपैया,कर जायगा सबको धमाल।
काली,लाल,पीली आँखों में ,फिर डोलेगी ख़ुशी कमाल।
नहीं कर रहे थे जो अबतक,अब मजबूरी बानी मिसाल।
आयकरों की घेरा बंदी में,सबको होना होगा हलाल।
जोड़-तोड़ में कहाँ हैं पीछे ,आयकरों के अधिकारी भी।
वहीँ बताएँगे जुगती सब , कैसे काला होये लाल।
बचे-खुचे जो बच जायेंगे , उनको सी.ए. देंगे सलाह।
यहाँ का जोड़ो,वहां का तोड़ो , पैसे शुद्ध बने सुखलाल।
पैनी नजरें क्या कर लेंगीं ,ठग तो बहुत रूप में मिलते।
जनता मिमयाये,मिमयाये,उनको तो क्या फर्क पड़ेगा।
वह तो मौज से घूमे फिरें,उनको क्या सुध-बुध जनमन की।
मगर रास्ता जो दिखलाया,उससे आ गया भूचाल।
कुछ सुधरेंगे ,कुछ बौने हो,करते जायेंगे कमाल।
लेकिन वक्त तराजू का तो,राह पे लाएगा उनको फिर।
कहते जाओ सुनते जाओ,सबके लिए है एक कानून।
थोड़ा सोचो,थोड़ा मोचो,सब जनता पर मत डालो।
कुछ तो अपना कुनबा सुधारो,कहाँ से आता चंदा-वंदा।
उसकी भी कुछ रपट दिखाओ,जनता समझे तुम्हें मिसाल।
वरना डंका पीटो जो मन,चाहे जनता बहु मिमियाए।
मौज करो तुम कुर्सी बैठे,जनता होती रहे हलाल।
वह रे लोकतंत्र के दिग्गज ,फरज तुम्हारा अव्वल यह है।
जो तुम करो वही अपनाओ,तब जनता समझेगी लाल।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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