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Friday, November 4, 2016

यह कविता संसार है सारा

यह कविता संसार है सारा ,
तरह-तरह के फूल  इसमें। 
कुछ में महक ,हैं कुछ बिन महके ,
लेकिन सब में अपनी रंगत ,
कोई चुने , कोई चढ़ाये ,
भक्ति भाव से ,श्रद्धामय हो ,
सबको इससे प्रेम सहज है। 
कोई भेद भाव नहीं इसमें,
हिन्दू ,मुस्लिम,सिक्ख ,ईसाई ,
सब में यह है सबसे दुलारा। 
          यह कविता संसार है सारा ,
          तरह-तरह के फूल  इसमें। 
हिमगिरि के उत्तंग शिखर पर ,
फूल सहज ही खिल जाते हैं। 
जीवन का संचार है उसमे। 
वह देता है भव को अमृत ,
उसमे दोनों भाव हैं मिलते। 
श्रद्धा,भक्ति समन्वय सारा। 
          यह कविता संसार है सारा ,
          तरह-तरह के फूल  इसमें। 
भोर पहर यह खिल जाते हैं। 
प्रकृति के श्रृंगार यही हैं। 
प्रकृति में यह रचे-बसे हैं। 
प्रकृति के उद्गार यही हैं। 
इनसे जीवन जीना सीखो। 
प्रेम और गुलजार यही हैं। 
हरदम हरपल देते रहते। 
कभी नहीं लेने की इच्छा। 
यह तो प्रकृति सुकुमार बहुत हैं।  
इनसे मिलता है सुख सारा। 
              यह कविता संसार है सारा ,
               तरह-तरह के फूल  इसमें।  
आवागमन लोक का सच है। 
काम,क्रोध,मद,लोभ यहाँ है।
प्रेम यहाँ स्थायी भाव। 
बाकी तो सब संचारी हैं। 
सुख दुःख की हैं परतें यहाँ पर। 
कर्मो से सब बंधे हुए हैं। 
कर्मो का रिश्ता है सारा। 
             यह कविता संसार है सारा ,
             तरह-तरह के फूल  इसमें। 










 

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