दुर्दिन में आंसू पीकर के ,
स्मृति का देखा बस लेखो।
ढरके मन को विश्राम करो,
बस मौन रहो, तुम मौन रहो।
काट जायेंगे विश्रांत बादल,
आने-जाने दो जीभर के।
आराम शांत बस मौन रहो।
कट जायेंगे दुःख रजनी के।
हर रात के बाद सवेरा है ,
हर सुबह के बाद शाम आती।
पीड़ाओं की गठरी भी तो,
ऐसे ही चली-चली जाती।
छलकाओ मत आंसू अपना ,
यह नयन रतन के मोती हैं,
इनको तो सजोना है तुमको,
सुख में ही बरसाना इनको,
ये सुखद सहज सगोति हैं।
दुर्दिन में आंसू पीकर के ,
स्मृति का देखा बस लेखो।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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