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Friday, November 11, 2016

जीना जंजाल हुआ, दुनिया की बातें

जीना जंजाल हुआ, दुनिया की बातें ,
इनकी सुनो,उनकी सुनो, कैसे कटे रातें।
कहते हैं चोर नहीं , पैसा कहाँ पाए ,
जीवन के संगति में, जोड़-तोड़ आये।
सोचा तो नहीं था , कैसे दिखाएँ ,
माल थोड़ा ज्यादा है ,समझ में न आये।
जाएँ जमा करने, राज खुल जाये ,
इसी उधेड़ बुन में, जंजाल बना जीवन।
ठोक-ताल नेतृत्व , बांछे तो खिल गयीं,
जनता जनार्दन प्रशंसा में जुट गयीं।
जी का जंजाल हुआ ,उनका अब जीवन ,
कैश रख मौज से ,मोछा जो टेयें ।
अब तो हे भैया , मोछा कहाँ  जाये ,
लाग-लपट में , दिनचर्या भरमाये।
सुबक रहे भीतर ही ,आंसू न छलकाऐं ,
कौन जतन करें ,अब पैसा क्या दिखाएँ।
बात सारी समझ बूझ ,रणनीति बनाये,
कैश को कहाँ-कहाँ जमा करने जाये ?
चाप बड़ा तगड़ा है ,मुहं क्या दिखाए?

 उमेश चंद्र श्रीवास्तव -












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