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Monday, April 10, 2017

बेटियां पढ़ , बढ़ें आगे नाम करें

poem by Umesh chandra srivastava

बेटियां पढ़ , बढ़ें आगे नाम करें ,
देश का तो सितारा बुलंदी पे हो।
आस में ही रहो ,बेटियां हैं धरम ,
इनको कर्मो से मिलता शिखर-ही-शिखर।

घर-गृहस्थी की बातें भी वो सब करें ,
मात को चाहिए बेटी पढ़ के बढ़े।
बेटी पढ़ जो रही ,हर जगह काम में ,
इस पढ़ाई से गति को मिलेगी दिशा।

सब दिशाओं में बेटी का परचम बढ़े ,
माँ-पिता की भी बांछे खिले-ही-खिले।
रोज का काम बेटी को सौपों मगर ,
ध्यान यह भी रहे बेटियां राष्ट्र की।

बेटियों से बढ़े देश का मान हो ,
बेटियों को बराबर दर्जा मिला।
बेटियां क्यों रहें बेटों से कम भी भला ,
बेटियों की कला तो है अक्षुण यहाँ।

देख लो गर अतीतों का पल वह सुखद ,
बेटी सीता ,सावित्री ,अहिल्या रही।
अपने तप से विधाता को दी बानगी ,
बेटियां तो हमारी हैं पूँजी , बढ़ें।

बेटियों से ही खिलता है प्यारा जहाँ ,
बेटी धरती रही, बेटी गंगा रही।
दोनों ने ही उचाई की मंजिल चुनी ,
देखलो-वो कहाँ आज दिखती यहाँ।

मत पड़ो तुम विमर्शों का यह दौर है ,
बेटियां बस पढ़ें और आगे बढ़ें।







उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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