poem by Umesh chandra srivastava
उनसे कहो कि वो तो आके बात तो करें।
नफरत 'औ' सितम कब तलक , बेज़ार न करें।
माना हुई गलती-जो उन्हें ताना दे दिया।
पर उनने भी हमको-उलहना भी खूब दिया।
दो चार रोज़ साथ रहे , फिर पलट गए।
न जाने कौन गम है , कि वो दूर हो गए।
माना कि कुछ ठहर के-मैं बात से मुकरा।
पर वह तो मुझसे एकदम तकरार कर गए।
अब बहुत हुआ कह दो , वो अब आएं घर मेरे।
वरना मुझे क्या मैं तो दूजा बसाऊंगा।
उनसे कहो कि वो तो आके बात तो करें।
नफरत 'औ' सितम कब तलक , बेज़ार न करें।
माना हुई गलती-जो उन्हें ताना दे दिया।
पर उनने भी हमको-उलहना भी खूब दिया।
दो चार रोज़ साथ रहे , फिर पलट गए।
न जाने कौन गम है , कि वो दूर हो गए।
माना कि कुछ ठहर के-मैं बात से मुकरा।
पर वह तो मुझसे एकदम तकरार कर गए।
अब बहुत हुआ कह दो , वो अब आएं घर मेरे।
वरना मुझे क्या मैं तो दूजा बसाऊंगा।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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