poem by Umesh chandra srivastava
भाषा के स्तर पर , सरल-सरल ,
भाव के स्तर पर मीनार ,
और बिम्ब के स्तर आकाश हूँ।
लक्ष्य साध कर बनाया है ,
रगड़-रगड़ कर-बस ,
बस उसी पथ पर चलना चाहता हूँ।
कुछ जीवन की ,
कुछ समय की ,
कुछ प्रभाव की ,
कुछ तो कभी-कभी अभाव की,
स्थितियां- बेचैन कर जाती हैं।
सोचता हूँ- यह जीवन चक्र है,
सारी दुनियादी बातें,
सह कर भी,
उस लक्ष को पाऊंगा।
सब कुछ सह कर- उस रचाव में,
तटस्थ रहूँगा, व्यस्त रहूँगा।
क्योंकि जो रचेगा वही बचेगा।
भाषा के स्तर पर , सरल-सरल ,
भाव के स्तर पर मीनार ,
और बिम्ब के स्तर आकाश हूँ।
लक्ष्य साध कर बनाया है ,
रगड़-रगड़ कर-बस ,
बस उसी पथ पर चलना चाहता हूँ।
कुछ जीवन की ,
कुछ समय की ,
कुछ प्रभाव की ,
कुछ तो कभी-कभी अभाव की,
स्थितियां- बेचैन कर जाती हैं।
सोचता हूँ- यह जीवन चक्र है,
सारी दुनियादी बातें,
सह कर भी,
उस लक्ष को पाऊंगा।
सब कुछ सह कर- उस रचाव में,
तटस्थ रहूँगा, व्यस्त रहूँगा।
क्योंकि जो रचेगा वही बचेगा।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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