poem by Umesh chandra srivastava
यह तो नीति ,नहीं है परंपरा ,
जिसको तुम अपनाते हो।
धर्म धुरी के बन के प्रणेता ,
राजनीति में आते हो ?
कहाँ गयी वह धर्म की बातें ,
राजनीति में घातें हैं !
तुम बतलाओ धर्म धुरंधर ,
राजनीति में आते क्यों ?
प्रश्न है वाजिब पूछ रहा हूँ।
तुम तो धर्म के साधक हो।
राजनीति को वरण किया क्यों ?
तुम तो धर्म के वाहक हो !
यह तो नीति ,नहीं है परंपरा ,
जिसको तुम अपनाते हो।
धर्म धुरी के बन के प्रणेता ,
राजनीति में आते हो ?
कहाँ गयी वह धर्म की बातें ,
राजनीति में घातें हैं !
तुम बतलाओ धर्म धुरंधर ,
राजनीति में आते क्यों ?
प्रश्न है वाजिब पूछ रहा हूँ।
तुम तो धर्म के साधक हो।
राजनीति को वरण किया क्यों ?
तुम तो धर्म के वाहक हो !
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
poem by Umesh chandra srivastava
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