poem by Umesh chandra srivastava
अतुलित है बस अतुलितशाली।
लोगों को भयमुक्त कर देते ,
बस नाम जपे जो भी भाई।
तुम राम उपासक ऐसे हो ,
कोई भी न दूजा वह होगा।
माँ सीता के तुम सुत ठहरे ,
जिसने तुमको अमरत्व दिया।
तुम ज्ञान के सागर ,आगर हो ,
सब ही का तेज संवारो तुम।
हर मन में प्रेम भाव का ही ,
दीपक तुम सदा जलाते हो।
तुम अंजनी पुत्र ,पवन सूत हो,
वीरों में अतुलित बलशाली।
सब नाम तुम्हारे चरणों में ,
मुझको भी तुम कुछ बल दे दो।
जीवन भर सुमिरन तेरा ही ,
हे राम उपासक ,रुद्रावतार।
तुममे यह सारी दुनिया है ,
तुम सदा करो कल्याण-हित।
तुम सदा करो कल्याण-हित।
तुम सदा करो कल्याण-हित।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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