poem by Umesh chandra srivastava
न भीड़ में रहना चाहता हूँ।
और न भीड़ का हिस्सा हूँ।
मैं जो हूँ, वह हूँ।
अपने लिए- तुम्हारे लिए,
सबके लिए।
भीड़ क्या है?
सिर्फ कायरता !
नेतृत्व क्या है?
केवल क्षमता।
इसीलिए भीड़ नही,
नेतृत्व हो,
"मैं" नही "हम" हो।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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