poem by Umesh chandra srivastava 
जैसे चादर पे बिंदी लगा दी गयी। 
देखो कैसी चंदनिया निखर सी गयी ,
अब नज़ारा तो कितना सुहाना लगे। 
दो पहर तो ठहर जा, यहाँ पर तो तू ,
देख मौसम ,मिज़ाज़ बदल जाएगा। 
जुस्तजू ज़िंदगी की यही तो रही ,
बात बनती यहाँ साथ जो तुम रही। 
चंद लमहों का थोड़ा मिलन ही रहा ,
पूरे जीवन की समझो ख़ुशी मिल गयी।  
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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