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Sunday, April 16, 2017

आज तुम्हारा रूप पवन है

poem by Umesh chandra srivastava 

आज तुम्हारा रूप पवन है ,
चेहरे पे दमकन भी है। 
जैसे उपवन में खिलवन हो ,
 मौसम में भी सावन है। 

मिलजुल कर इस अमर बेल पर ,
रचना हम तुम कुछ कर लें। 
प्रकृति का अनमोल सदन यह ,
इन सदनों में कुछ हलचल हो। 

चलो वहां सुकुमारित पल में ,
सृष्टि का निर्माण करें। 
हम तुम मिलकर इस सृष्टि का ,
थोड़ा तो विस्तार करें। 




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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