poem by Umesh chandra srivastava
आज तुम्हारा रूप पवन है ,
चेहरे पे दमकन भी है।
जैसे उपवन में खिलवन हो ,
मौसम में भी सावन है।
मिलजुल कर इस अमर बेल पर ,
रचना हम तुम कुछ कर लें।
प्रकृति का अनमोल सदन यह ,
इन सदनों में कुछ हलचल हो।
चलो वहां सुकुमारित पल में ,
सृष्टि का निर्माण करें।
हम तुम मिलकर इस सृष्टि का ,
थोड़ा तो विस्तार करें।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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