poem by Umesh chandra srivastava 
तुमसे नयन लड़ी जो प्रियतम ,
नयनों में मधुमास हुआ। 
इधर-उधर अब मत भटकाओ ,
अबतो कुछ अहसास हुआ। 
नहीं पता था प्रियतम तेरे ,
नयनों में इतना रास है। 
बाग़ -बाग़  सब उपवन हो गए ,
उहा-पोह में साँस हुआ। 
कहो बताओ किधर चले हम ,
पंथ यहाँ से जाते अनेक। 
किस पथ पर हम चलें बताओ ,
मन एकदम संत्रास हुआ। 
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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