peom by Umesh chandra srivastava
या मैं वंदन करू।
मात तुम ही तो हो,
जल, थल, अम्बर, सही।
तू ही प्रकृति, तू ही स्वास्थ्य में,
है रमी।
तू ही विकसित जगत की,
है अद्भुत छवि।
तू ही ब्रह्मा, तू ही विष्णु,
तू ही महेश।
सब में व्यापी,
तेरा मैं कर नित भजन।
तू सजन की है सजनी,
तू ही मात है।
तू ही सूत है बनी,
मात आज्ञा तू ही।
तेरे दर्शन से,
अनुपान सुखद रागनी।
तू ही अम्बा,
तू ही तो जगदम्बा मही।
तेरा ही है जगत,
तू जगत नर्तन।
तेरे में है बसे,
तेरा दर्शन करे।
तू ही श्रद्धा की देवी,
तू ही आस्था।
भर दे मन में मेरे,
वाणी की साधना।
हम करे तेरा अर्चन,
तेरा दर्शन करे।
तूने दृष्ठि से,
पूरी है सृष्ठि रची।
हम करे नित भजन,
यही वंदन है माँ।
उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
peom by Umesh chandra srivastava
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