यही युग की बलिहारी ,
इसी में दुनिया सारी।
मैसेज दे दो मित्र हो चाहे ,पिता , मात 'औ 'भाई।
सब मिलजाएँगे इसपर तो ,यह है बहु सुखदाई।
मैसेज नहीं ,उन्हें भी देखो -कंप्यूटर है सच्चा।
बड़ा-वड़ा चाहे कई हो, सब हैं इसमें बच्चा।
जरा मैसेज कर देखो।
तुम्हे सब मिले यहाँ पर।
जगत का प्रेम परस्पर ,
दिखाई यहाँ पे देता।
परम सुख तब मिलता है।
जब कोई 'हैल्लो' है कहता।
जगत की वाणी कहता , नहीं है कोई कटुता।
बने जो शत्रु तुम्हारे ,उन्हें भी देखो सारे।
नहीं कुछ कर पाएंगे ,कमेंट खुब दे दो प्यारे।
उधर से तुमको मिलेगा ,ह्रदय में फूल खिलेगा।
चलेगी मधुर तो वाणी ,बनेगी बात वो सारी।
मीत , अब शत्रु बनेंगे ,बात खुलकर के होगी।
मिटेगी सारी 'कारा' , दूर हो संसय सारा।
प्रेम की अजब रागनी , गीत गायेगी इसमें।
यही जग की है सीमा ,यही कंप्यूटर महिमा।
इसे बस ध्यान से देखो,मनन चिंतन कर लेखों।
यही युग की बलिहारी ,
इसी में दुनिया सारी।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव
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