month vise

Friday, October 28, 2016

धनतेरस तेरा अभिनन्दन

धनतेरस तेरा अभिनन्दन , माला-फूल,रोली,चन्दन।
मन भाव से तेरा हम करते , पूजा अर्चन 'औ' निज वंदन।
यह पर्व सुहाना आता जब , सब डोल-हाट में जाते हैं।
वहं विविध प्रकार के फल-मीठा ,आभूषण खूब खरीदते हैं।
अपनी-अपनी  क्षमता लेकर , जनलोग खरीदारी करते।
यह पर्व सुहाना मंगलमय ,वर्षों भर मंगल करता है।
गणपति,भोलेसुत ,गणनायक ,लक्ष्मी संग पूजे जाते हैं।
अमोद-प्रमोद से हर्षित सब ,भावों का पुष्प चढ़ाते हैं।
निर्विघ्न करो हे गणनायक ,जीवन में सुख की बेल बढे।
मन में भावों का यही पुंज लेकर सब उन्हें भजते हैं।
कहते हैं हे लक्ष्मी-गणेश-हर रोज हमारे अंगना में,
लक्ष्मी,वीणा का स्वर गूंजे ,बस और क्या इच्छा है मेरी ?
मानव मन में बस प्रेम जगे , इस  भाव से सब कुछ मिलता है।
जीवन का पावन सब उपवन ,तेरे गूंजों से सिंचित हो।
धनतेरस तेरा अभिनन्दन , माला-फूल,रोली,चन्दन।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...