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Tuesday, October 25, 2016

हर मोड़ पर तुम्हारे , आहट के चिन्ह मिलते।

हर मोड़ पर तुम्हारे , आहट के चिन्ह मिलते।
खामोश तुम रही हो , मुखड़ों के बिम्ब खिलते।
मुझे याद है तुम्हारा , सुन्दर सलोना मुखड़ा ,
ऑंखें तो झिल कमल थीं ,अधर गुलाब टुकड़ा।
चलती थी तुम तो ऐसी , जैसे कापें जलज हों ,
सुन्दर यौवन तुम्हारा ,सब नाक-नक्श अच्छे।
स्वर में मधुर मधुरता ,बस मीठा-मीठा पन था।
शरमा के झुक जो जाती ,जुम्बिश सा बदन होता।
हर बात हर पहर में ,तुम आज भी हो शामिल।
शरीर तो नहीं है ,पर तुम ह्रदय में अब भी ।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव - 

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