दशहरा का मेला, लगा है यह मेला।
चला जा रहा है यहाँ रेले पे रेला।
यह मेला है भाई दशहरा का मेला।
सजी हैं मोहल्ले-मोहल्ले में दुर्गा।
वहां भीड़ खूब है भजन हो रहा है।
सभी भक्त सारे लगन से खड़े हैं।
'औ' माता के दर्शन किये जा रहे हैं।
उसी बीच मेला में चौकी है आई।
इधर की उधर जा के भीड़ समायी।
बहुत 'रश' ,बहुत है ,चलना है मुश्किल।
उसी बीच रोता है ललना किसी का।
सभी कह रहे हैं , उसे चुप कराओ।
भजन गा के या बसुरिया दिला के।
वह ललना की माई कहे जा रही है।
हे भइया हे चाचा दुहाई है भाई।
यही प्रेम तो है जो मेला कराता।
नहीं द्वेष कोई यहाँ जग है आता।
यहाँ संस्कृत भी यहाँ सभ्यता भी।
यहाँ संस्कारित हैं जन भी बहुत से।
बचा के वो चलते दिखा के वो चलते।
वो कहते उधर से इधर आके देखो।
यहाँ प्रेम का तो बहुत खूब मंजर।
यह मेला है भाई दशहरा का मेला।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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