राम नाम के पटतरे , बोट मिले रघुनाथ।
माया ऐसी रच दो ,कुर्सी के हम साथ।
फिर देखेंगे आपको,कहाँ बसाया जाये।
लुटिया अब तो डूबती , पार करो रघुनाथ।
जनता गूंगी - बाहरी ,इसका क्या है मोल।
एक ही लालीपाप में , रीझेगी खुब जोर।
बोल के नारा राम का ,सब कुछ हो श्रीराम।
आप हमारे नाथ हैं ,हम सब तुम्हरे दास।
इसी आस में राम अब ,समर जीत हम जाएँ।
अंतिम तुम तो आस हो , पार करो रघुनाथ।
बलवा , जाति ,संप्रदाय तो सब तोहरे हैं दास।
करो कृपा कुछ फिरसे सही ,रही सही बच जाये।
तुम्हारे शरण में नाथ हम , आये हैं कर जोड़।
पार करो रघुनाथ अब ,कुर्सी का है मोह ।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
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