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Thursday, October 27, 2016

कर्ण का पश्चाताप -2

तुम धन्य हो भ्राता,तुम्हें कोटि धन्यवाद है ,
अब तो नहीं मेरे ह्रदय में कोई भी विषाद है।
तुम अंग होगे राज्य के ,नेतृत्व तेरा हो प्रवीण।
जो साथ तेरे पार्थ हैं ,कृष्ण 'औ' कन्हैया हैं सही।
उनके शरण में तुम रहे ,मैं भी हुआ हूँ धन्य अब।
अविराम श्याम मनोहरी ,अद्भुत छटा अविराम तुम।
है बस तुम्हें प्रणाम केवल ,बस तुम्हे परणाम है।
तुम लघु भ्राता पर तुम्हें धर्मराज कहते सभी।
तुम ही बढाओ देश में,निज कुल के अब तुम नाम को।
जो भी हुआ , जो हो रहा उस चराचर की महिमा सही ।
मुझको नहीं कुछ ग्लानि अब  ,अब तो यहाँ पर चल रहा।
अविराम भारत वर्ष को श्रद्धा सुमन मैं दे रहा।
मैं चला सुखधाम ,तुम सब इस धारणि पर ही रहो ।
जो शेष है कुछ काम , उसको पूर्ण अब तुम ही करो।
जयराम ,जय-जय राम ,और मोहन की बोलो जय कहो।
सुखधाम है , सबकुछ यहीं , मुरली जहाँ पर बज रही।
अविराम ,श्याम की मनोहरी छठा ,ही और ही निखार रही।
हे कृष्ण हे राधा ,राधा कन्हैया बस तुम्हे परणाम।
 धरती , धरा तुम्हें कोटि कोटि अविराम और प्रणाम।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -









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