कजरारे नयन तेरे , माथे पे चमक बिंदी।
गलों में गुलाबीपन ,अधरों पे चटक लाली।
बदनों में अजब खुशबु ,तू चलती मतवाली।
देखा तुझे जब-जब मैं ,मय की तू लगी प्याली।
उस प्याले में क्या है , जो तेरे बदन में है।
तू चलती बलखा के , प्यालों में भला क्या दम?
तेरे में नाश जो है , उसमे तो भला क्या है ?
तू रोज संवरती है , उपवन सी खिलती है।
तेरे में परस जो है ,गैरों में कहाँ हमदम।
तू बस निकले ऐसे , हर रोज कहेंगे हम।
कोई दुःख के बदल ,तेरे ऊपर न आएं।
बस यही दुआ मेरी , तू फूल सा महकाये।
गलों में गुलाबीपन ,अधरों पे चटक लाली।
बदनों में अजब खुशबु ,तू चलती मतवाली।
देखा तुझे जब-जब मैं ,मय की तू लगी प्याली।
उस प्याले में क्या है , जो तेरे बदन में है।
तू चलती बलखा के , प्यालों में भला क्या दम?
तेरे में नाश जो है , उसमे तो भला क्या है ?
तू रोज संवरती है , उपवन सी खिलती है।
तेरे में परस जो है ,गैरों में कहाँ हमदम।
तू बस निकले ऐसे , हर रोज कहेंगे हम।
कोई दुःख के बदल ,तेरे ऊपर न आएं।
बस यही दुआ मेरी , तू फूल सा महकाये।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
No comments:
Post a Comment