मात कर्म 'औ' कर्म आश्रित जीव है जीता जग में।
धर्मक्षेत्र 'औ ' कार्यभूमि संलिप्त सदा जीवन भर।
ललन-पालन में दृढ़ता हो ,जीव बढ़ेगा आगे।
जैसे भू में बीज पड़ा ,पर स्फूर्ति धरा से मिलती।
वैसे जीव माँ गर्भस्थ , आने पर भी आश्रित।
उम्र बढा तब होता जाता माँ से वह निराश्रित।
पर संस्कार सदा जीवन भर , माँ की इच्छा पोषित।
माँ बिन कोई अस्तित्व नहीं है जीव का इस भू जग में।
प्रथम गुरु जीवन भर गुरुतर माँ रहती है दृग में।
माँ पूरित है यह संतति , माँ की अमरता दृढ है।
माना जग में , रम्भ काल से माँ से ही सब जन्मे।
बीज का है अस्तित्व मगर वह जननी बिना निराश्रित।
माँ की महत्ता सर्वोपरि है , जग भर प्राणी जान।
माँ ही है अनमोल धरा वह समस्त जीव जहँ रहते।
सबकुछ सहती है जननी पर रहती संतति हित रक्षक।
सदा-सदा से माँ है पूजित, नमन उसे बस कर लो।
धर्मक्षेत्र 'औ ' कार्यभूमि संलिप्त सदा जीवन भर।
ललन-पालन में दृढ़ता हो ,जीव बढ़ेगा आगे।
जैसे भू में बीज पड़ा ,पर स्फूर्ति धरा से मिलती।
वैसे जीव माँ गर्भस्थ , आने पर भी आश्रित।
उम्र बढा तब होता जाता माँ से वह निराश्रित।
पर संस्कार सदा जीवन भर , माँ की इच्छा पोषित।
माँ बिन कोई अस्तित्व नहीं है जीव का इस भू जग में।
प्रथम गुरु जीवन भर गुरुतर माँ रहती है दृग में।
माँ पूरित है यह संतति , माँ की अमरता दृढ है।
माना जग में , रम्भ काल से माँ से ही सब जन्मे।
बीज का है अस्तित्व मगर वह जननी बिना निराश्रित।
माँ की महत्ता सर्वोपरि है , जग भर प्राणी जान।
माँ ही है अनमोल धरा वह समस्त जीव जहँ रहते।
सबकुछ सहती है जननी पर रहती संतति हित रक्षक।
सदा-सदा से माँ है पूजित, नमन उसे बस कर लो।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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