हे शक्ति प्रदाता माँ जननी ,
विजयादशमी है पर्व तेरा ,
तुमको हो बारंबार नमन।
श्री राम शक्ति की प्रेरक तुम ,
मानस में तेरा रूप बसा ,
तन मन से , जो तन्मयता से-
तेरी आराधना करे अगर ,
तू उसको देती शक्ति रूप।
वह मानव जग में पा जाता ,
सुख , समृद्धि 'औ' शौर्य गान।
तेरे आशीष से हे माता ,
वह जग जीवन में प्रगति छोर ,
नित आगे बढ़ता दृढ़ता से ,
सब निज कारा दूर हटा।
विजयी-सिजयी सब होता है -
तेरी अराधना के बल पर।
माँ शक्तिमयी करुणा की पुंज ,
विजयादशमी का महत्व है तू।
तूने ही कृपा करी रघुबर,
रावण दुर्दांत को रण मारा ,
भाव दुनिया को आतंक मुक्त ,
रावण का राज्य मिटा डाला।
माँ आज परिस्थिति ऐसी है ,
राक्षसी वृत्त को मार-त्याग ,
मानव जग जीवन में होये ,
केवल दुलार 'औ' प्यार-प्यार।
माँ यही हमारी इच्छा है ,
सब नर तन को हर्षित कर दो ,
आये न विपत्ति कभी यहाँ -
सब जन मन को समृद्धि दो।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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