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Monday, October 3, 2016

माँ के दुआरे जागराता ,

माँ के दुआरे जागराता ,
सभी को है भाता,
प्रेम से बोले सब  माता।
भीड़ भाड़ भक्तन की ,
लाइन लगी है ,
माता के दर्शन हेतु ,
भक्त खड़े हैं।
भक्तों से मोल-तोल करते,
पण्डे विंध्याचल के।
भक्तो को खूब भरमाये ,
पंडा उनको नचाये।
पुलिस खड़ी-टोटा सी देखती।
पण्डो की हेकड़ी चलती वहां पर।
सारा प्रसाशन पंगु बना है ।
 पण्डा का बोल-बाला चलता वहां पर।
माँ के दर्शन लिए ,
पैसा जो चढ़ाये।
पण्डा उसे जेब में तुरंत डाले ,
न माँ के चरनन में पैसे चढ़ाये।  
भक्तों पे चले वहां पण्डा की टेकडी।
पण्डा जीभर गारियाऐं ,
'औ' भक्तन केवल मिमियाए ,
ना कुछ कर पाएं।
पांडा से भिड़े जो ,
लत घूसा खाये ,
माँ के दुआरे जाके खूब पछताएं।
पुलिस वहाँ बनी केवल मूक दर्शक।
न कुछ कर पाऐ ।
माँ के दरबार में चल रहा मोल-तोल।
मेलाधिकार को  सब कुछ है मालूम।
फिर भी नहीं कुछ करते,
केवल 'हांक ' भरते ,
बने मूक दर्शक।
कब तक चलेगा भैया यह बोल-बाला ,
कुछ तो करो मेरे भाई।
जिससे भक्तन न ठगे जाएँ।
माँ के वो चरणों में ,
लोट पोट घर आएं ,
खुशी के दीपक मन में जलाये।
नवरात्रि में हरसाएं ,
विंध्याचल दर्शन को जाएँ।




उमेश चंद्र श्रीवास्तव-









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