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Friday, October 21, 2016

गद्य और पद्य

गद्य पुरुष है औ पद्य स्त्री ,
आदिकाल में दोनों अलग ,
विलग-विलग सत्ता दोनों की। 
लेकिन धीरे -धीरे ,
समय के प्रवाह ने ,
दोनों को समान कर दिया। 
आज रचे जा रहे -
पद्यमयी गद्य ,
औ' पद्य तो गद्यमयी हो ही गया। 
शायद इसी लिए पद्य में ,
नारी में वह लयता ,
वह कल्पना लोक, 
वह विभक्ति , चुप-चाप,
धीरे-धीरे खिसक गयी है ,
बिलकुल हमारी ,
आज की कविता की तरह। 

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