गद्य पुरुष है औ पद्य स्त्री ,
आदिकाल में दोनों अलग ,
विलग-विलग सत्ता दोनों की।
लेकिन धीरे -धीरे ,
समय के प्रवाह ने ,
दोनों को समान कर दिया।
आज रचे जा रहे -
पद्यमयी गद्य ,
औ' पद्य तो गद्यमयी हो ही गया।
शायद इसी लिए पद्य में ,
नारी में वह लयता ,
वह कल्पना लोक,
वह विभक्ति , चुप-चाप,
धीरे-धीरे खिसक गयी है ,
बिलकुल हमारी ,
आज की कविता की तरह।
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