नव गीत मैं गाउँ नवरातर ,
नव देवी की भी चर्चा हो।
यह शक्ति बनी कैसे देवी ,
हैं शास्त्र हमारे बतलाते।
शिव मात्र ही ऐसे देव तो हैं ,
जिनके सर्जन से सब उपजे।
दुर्गा हो ,काली या शारदा ,
सब शिव की शक्ति का सर्जन।
वह गृहस्थ नहीं , न कामी है.
बैराग भाव से ओत , प्रोत।
उनके मन में रस भरने को,
उमा अर्धांगिनी बानी हुईं ।
कुछ मन की इच्छा ,दीक्षा पा ,
शक्ति के रूप में रमी हुईं ।
उनका ही अंश सभी देवी ,
उमा जननी हैं जगदम्बा ।
उनके अर्चन से ही मिलता ,
जग में खिलता सब फूल अमर।
वह जगधात्री , वह जग माता,
उनके चरणों में भक्त आता।
श्रद्धा से माथ झुका कर मैं,
माँ से विनती, वंदन करता।
दे दो माँ - जन-मन पूर्ण बने ,
सम्पूर्ण जगत के सब मानव।
दानव का भाव नहीं उपजे ,
सब वीणा सूत ही बने रहे।
इस में ही मिलता सुख सारा ,
विस्तारित हो 'औ' फले-फूले।
नव देवी की भी चर्चा हो।
यह शक्ति बनी कैसे देवी ,
हैं शास्त्र हमारे बतलाते।
शिव मात्र ही ऐसे देव तो हैं ,
जिनके सर्जन से सब उपजे।
दुर्गा हो ,काली या शारदा ,
सब शिव की शक्ति का सर्जन।
वह गृहस्थ नहीं , न कामी है.
बैराग भाव से ओत , प्रोत।
उनके मन में रस भरने को,
उमा अर्धांगिनी बानी हुईं ।
कुछ मन की इच्छा ,दीक्षा पा ,
शक्ति के रूप में रमी हुईं ।
उनका ही अंश सभी देवी ,
उमा जननी हैं जगदम्बा ।
उनके अर्चन से ही मिलता ,
जग में खिलता सब फूल अमर।
वह जगधात्री , वह जग माता,
उनके चरणों में भक्त आता।
श्रद्धा से माथ झुका कर मैं,
माँ से विनती, वंदन करता।
दे दो माँ - जन-मन पूर्ण बने ,
सम्पूर्ण जगत के सब मानव।
दानव का भाव नहीं उपजे ,
सब वीणा सूत ही बने रहे।
इस में ही मिलता सुख सारा ,
विस्तारित हो 'औ' फले-फूले।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
No comments:
Post a Comment