उस पार सखे अविराम धाम ,
बिन पग के सारा काम धाम।
बिन कान सुने है राम-राम,
बिन कर के पूरा काम-वाम।
इस पार सखे सुखधाम-धाम,
जीवन है जीवित आविराम।
सब सुख का सागर जहाँ-तहाँ,
मानव,जगजीव है यहाँ-वहां।
इस पर सभी कुछ संभव है,
उस पर का भ्रम है बिना काम।
यह जग सच्चा, यह जग अच्छा ,
है दया ,क्षमा 'औ' प्रेम त्याग।
जगती का सारा जग दुलार,
पूछकार स्नेह है आर पार.
यहं पर जीवंत है मनुहार,
संसार वार सब कुछ यहं है।
यह है जगती का अमर द्वार
इस पार सभी कुछ संभव है।
उस पर का कैसा जग भव है ,
सब भ्रम की बातें वहां-वहां।
है कौन देवता कहाँ-कहाँ ,
कैलाश शिखर है इसी पार।
जहाँ पर रहते कल्याण धाम,
सब यहं रहकर ही करते हैं ।
कल्याण काम,कल्याण राम,
फिर कौन कहाँ है उस पार।
सब झूठा मिथ्या राम राम ,
उस पर सखे अविराम धाम।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
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