सजाओ अब दीपक दिवाली है आयी।
सुखद रागनी का सलोना दिवस है।
सजाओ घरों को महक रोशनी से।
बिछाओ वह बिजली की चादर सुहानी।
लगे घर सलोना , अजब दीप्ति होगी।
मनो में यही प्रेम दीपक जलाओ।
बनाओ नगर को , होये प्रेम पूजा।
सभी में हो एका न लागे कोई दूजा।
कि सब डोल, बोलें-यही प्रेम पूजा।
सड़क हो , दुआरे पड़ाका बजाओ।
ख़ुशी अब है आयी दिवाली मनाओ।
वह मुन्ना 'औ' मुन्नी ,मिठाई भी खाओ।
सरल भाव से तुम दिवाली मनाओ।
खिले रूप मन में अमर दीप बनके।
यही लौ हमेशा मनों में जगाओ।
सजाओ अब दीपक दिवाली है आयी।
सुखद रागनी का सलोना दिवस है।
सभी मन के उपवन में दीपक जलाओ।
बड़े गौर से फिर वही गीत गाओ।
वतन पे मरे जो , वही तो वतन के।
है वार्ना अकेले तुम बोलो 'औ' जाओ।
नहीं चाहिए इस जगत मे वह प्राणी।
जो झूठे का केवल पुलिंदा सुनाये।
फकत बस नज़र से नहीं देख जाओ।
वतन के तुम हो, कुछ वतन का सुनाओ।
सजाओ अब दीपक दिवाली है आयी।
सुखद रागनी का सलोना दिवस है।
घरों में अँधेरा मिटाओ दिया से।
वही बात मन में ,अंधेरा जो छाया।
उसे प्रेम दीपक से फिर जगमगाओ।
ख़ुशी का दिवस है ,मगन गीत गओ।
हो रोशन भी भीतर ,दिवाली मनाओ।
रहे पास जो भी वतन के वो प्राणी।
तिरंगे का मोहक लगन तुम जगाओ।
सजाओ अब दीपक दिवाली है आयी।
सुखद रागनी का सलोना दिवस है।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
No comments:
Post a Comment