month vise

Friday, December 9, 2016

हम तो मौन साध कर बैठे-1

हम तो मौन साध कर बैठे,
तुम बोलो मंचों पे खड़े। 
हम तो अभी नहीं बोलेंगे ,
तुम बोलो बस अड़े,पड़े। 
 हम तो तुम्हे दिखा ही देंगे ,
आओगे जब मैदानों में। 
तब पूछेंगे वोट कहाँ दे ,
तब तुम खुद ही घिघियाओगे। 
हमे लगा लाइन में बंधू ,
तुम बैठे बस बोल रहे। 
कहाँ-कहाँ की बात बताऊँ ,
तुम तो ऐठे ,बैठे वहां। 
हमको 'सुध' की याद दिलाकर ,
खेल खेलते नीति का। 
हमे समझ के गूंगा-बहरा ,
तुम तो बड़े सचेतक हो। 
कहाँ गया वह राग तुम्हारा ,
कहाँ गयी वह हेकड़पंथी। 
समय बचा है थोड़ा दिन अब ,
छूमन्तर दिखलाओ तुम। 


  

उमेश चंद्र श्रीवास्तव-

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...