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Friday, December 16, 2016

जीवन के सागर में, गागर है प्रेम का।

जीवन के सागर में, गागर है प्रेम का।
बून्द-बून्द साँसों से, जीवन तो चल रहा।
जीवन है रागिनी, मीतों के प्रेम का।
छलका तो जानलो, प्रेम की उमंग है।
जीवन तरंग है, आंसू है, खुशियाँ है।
जीवन की धारा  में, संग, साथी बनतें है।
जीवन पतवार का, प्यार-वार जीवन में।
होता संजोग से, जीवन की बात भी।
बनता है योग से, जीवन की रसना है।
रस ही आनंद है, इसमें जो डूब गया।
वही बना छंद है, छन्दों की गूँज में।
रास, बिंब, अलंकार, यहाँ पूजे जाते है।
ऐसा ही जीवन है, चलता है, चलेगा।
साथी संघाती का, जाना भी खलेगा।
खलना "औ" छलना, तो जीवन की रश्म है।
कसमे व वादे भी, जीवन की भस्म है।
इसको मल-मल के, तन मन में डाल लो।
खाल-वाल छोड़ छाड़, सत्य को बाँध लो।
वही सुख पायेगा, जीवन के जोग का।
पाँव-पाँव धरती पे, रखता चला जाएगा।
                                                          - उमेश चंद्र श्रीवास्तव 

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