हम तो मौन साध कर बैठे ,
तुम बोलो मंचों पे खड़े।
तुम तो बने खिलाडी अव्वल ,
झांक झरोखा ,भीतर-भीतर।
जनता को ईमान बता कर ,
खुद स्वयंभू बन बैठे।
बोलो तुमको महाभारत की ,
बात पुरानी मालूम होगी।
गीता के उपदेशक कृष्णा ,
बहुत दिया उपदेश मगर।
धर्म कर्म की बात बताओ ,
अब भी अमल कहाँ करते हैं ?
वैसे लगती नीति तुम्हारी ,
लोगों को सच ही बतलाओ।
मिथ्या का आडम्बर रचकर,
मिथक तोडना चाह रहे हो।
संचय की है मूल संस्कृति ,
उसको ही बिगड़ रहे हो।
कैसे होगा, कितना होगा ,
सबको ही घूमा डाला।
अब तो बतलाना ही होगा ,
प्लानिंग क्या-क्या योजन है ?
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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