स्त्री विमर्श के नाम ,
परोसा जा रहा दैहिक दर्शन।
बहुत हो चुका ,
अब तो करो कुछ नया प्रदर्शन।
लोक,समाज ,द्वंद , फंद का ,
कुचक्र चला जो-
उस पार का बारीक ,
सार्थक हो कुछ लेखन।
जैसे आज विकास के दौर में ,
अब भी फलता-
अंधी श्रद्धा का दर्शन।
अनपढ़ ,निपट गंवार ,
ठेठ अंगूठा वाले ,
बने अजब के बाबा।
करते बल भर शोषण।
'औ' हम स्वार्थ पूर्ती में ,
भटक-भटक के ,
चक्कर में-उनके आते हैं,
प्रतिदिन ,प्रतिक्षण।
ऐसे बाबा के खिलाफ ,
खूब हो प्रदर्शन।
उनको पकड़ कराओ ,
जेल और डंडा दर्शन।
सबसे ज्यादा शोषित -
यहाँ हो रही है ,
आधी दुनिया की मालकिन।
जननी ,बेटी 'औ ' कुलवधू।
जननी है अटूट ,
श्रद्धा से ओत-प्रोत।
उसका करो सम्मान ,
करो कुछ नया दिग्दर्शन।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
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