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Monday, December 5, 2016

पांव की गति कम हो जाती है

पांव की गति कम हो जाती है ,
उम्र के ढलान का अहसास दिलाती।
जो पग तीव्र गति से ,
कभी चलायमान थे।
आज कुछ ठगे ,ठहरे से महसूस होते।
निगाहों में पैना पन ,
अनुभव का अटूट अहसास ,
धूप से नही ,
अनुभवी दृष्टि से पके -
माथे पर गिरे हुए बाल।
सब कुछ है -इस देहं धारी ,
माटी की बुत में।
बस है नहीं-तो ,
पगों की वह तीव्रगामी चाप।
बस है नही ,वह-
सांसों का समतल प्रवाह।
टूट जाती हैं सांसें ,
बल पड़ने पर -बिखर जाता है ,
तन-मन का संतुलन।
शायद इसी से-नई पौध ,
 जिसके तले -बड़ी ,बढ़ी ,
आज छनछना जाती है,
उस थके हुए,
पांव की गति ,देखकर।
भुनभुना जाती है ,
उस ढलान की बोली सुनकर ,
तुनुक जाते हैं लोग ,
तीव्र गति से आगे बढ़ ,
यह कहते हैं कि -
बूढ़े पांव को समझना चाहिए ,
कि वह अपने ,
गति वाले के साथ चले।
बस यही सवाल है ,
अनुभवों को नही ,
बाटना चाहती ,
यह नयी पौध।
अपने में मस्त ,
अपनी बात पर ,
दौड़ भाग कर रही ,
यह पौध -कहाँ जाएगी !
कम गति वाले पांव की ,
यही चिंता है ,
जो सवालों के रूप में ,
समाज को झकझोर रही है।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव-

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