आंसू छलका, बीत राग की ,
याद पुरानी आयी है।
याद मुझे है उसका रुनझुन ,
मन को विभोरित कर जाता।
मन के सरे तार-वार को ,
उसका मिलना ही भाता।
एक बार की बात बताऊँ ,
हम दोनों गए संगम तट।
वहां मिला था साधु-एक जो ,
आगत बात बताता था।
उसने पुछा -साधु भईया ,
हम सब का है सफर कहाँ ?
झट वह बोला -
तुम छोड़ोगी पहले साथ।
बाकी सुखमय जीवन है।
दिवस सलोनी - मनुहारों में ,
कैसे समय गया-मेरा।
आज आहुति देकर आया ,
उसको पच तत्व अर्पित।
मन भी थोड़ा व्यथित हुआ था ,
उसे समर्पण कर आया।
जहाँ से-रूप सलोनी आयी ,
वहां विदा मैं कर आया।
अब तो सुधियों की झुरमुट में ,
उसकी सुध ,उसकी बातें।
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:................................ शेष कल
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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