प्रेम दिल का मिलन केवल ,देहं तो आनंद है। 
    
मन उमंगों का आवेशित ,देहं तो बस छंद है। 
रूप गागर -सागरों में ,रसासिक्त करता हुआ। 
देहं का भोला समर्पण पा हुआ मदमस्त है। 
प्रेम तो भक्ति है शक्ति ,मानवीय संवेदना। 
देहं तो पशुवत बनाती ,प्रेम देता दृष्टि है। 
प्रेम में जो पक गया सो ,बन गया अनमोल प्राणी। 
देहं में लिप्तीकरण तो ,भोग का आध्यात्म है। 
प्रेम का स्वर तो मधुर है, प्रेम तो बस त्याग है। 
देहं का मिलना बिछड़ना ,वासना का राग है। 
प्रेम तो अद्भुत क्षुधा है ,भर नहीं पाता कभी। 
देहं की सीमा निहित है ,बल गया वह राग भी। 
पर बताओ प्रेम में तो ,साँस तक अनुराग है। 
प्रेम है ईश्वर की वाणी ,प्रेम सब कुछ आज है। 
जो बना इस पथ का प्राणी ,उसका जीवन सार्थक। 
देहं के चक्कर जो भरमा ,वह गया इस लोक से। 
जहाँ जीवन की दशाएं ,दुर्दशाएँ बन गयी। 
इसी से मैं कह रहा हूं ,प्रेम तो बस प्रेम है। 
इसी पथ का बन के राही ,प्रेम से बस जी रहो। 
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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