पूरा जीवन है मधुशाला।
पी लो तुम प्यालों पर प्याला।
ऊपर गगन मही है नीचे ,
इसका कोई भान नहीं है।
केवल धुन में झूम रहे हैं ,
पीने वाले ,पीने वाला।
राग द्वेष से मुक्त रहे हैं ,
नहीं बैर से कोई नाता।
सबको बुला-बुला कर देते,
आओ पी लो ,छक मतवाला।
पंथ एक के पथिक बने सब ,
झूम रहे ,पग-पग वो धरते।
घुमा फिरा कर बात न करते ,
कहते चलो-चलो मधुशाला।
राजा-रंक का भेद नहीं है ,
यहां सभी मधुप्रेमी धुन में।
कहते आओ पैग लगा लो ,
जीवन तो मधु है ,मधुशाला।
पी लो तुम प्यालों पर प्याला।
ऊपर गगन मही है नीचे ,
इसका कोई भान नहीं है।
केवल धुन में झूम रहे हैं ,
पीने वाले ,पीने वाला।
राग द्वेष से मुक्त रहे हैं ,
नहीं बैर से कोई नाता।
सबको बुला-बुला कर देते,
आओ पी लो ,छक मतवाला।
पंथ एक के पथिक बने सब ,
झूम रहे ,पग-पग वो धरते।
घुमा फिरा कर बात न करते ,
कहते चलो-चलो मधुशाला।
राजा-रंक का भेद नहीं है ,
यहां सभी मधुप्रेमी धुन में।
कहते आओ पैग लगा लो ,
जीवन तो मधु है ,मधुशाला।
पूरा जीवन है मधुशाला।
पी लो तुम प्यालों पर प्याला।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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