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Sunday, December 25, 2016

आंसू छलका ,बीत राग की-1

आंसू छलका ,बीत राग की ,
याद पुरानी आयी है। 
सुधियों का वो मंजर-आलम ,
बरबस कौंध गया मन में। 
तन भी शिथिल हुआ अब कुछ तो ,
पर मन में बिहसन वह है। 
रूप दुलारी जब आयी थी ,
मेरे घर 'औ' आंगन में। 
भावों के सब पंख उगे थे ,
पछुआ मन बौराया था। 
सुबह-दुपहरी, शाम-भोर की ,
क्या सुध थी ,हम दो जाने ?
हरदम मन परसन को आतुर ,
लोक -लाज का भय भी था। 
पर वह रूप सलोनी चातुर ,
इधर-उधर मौका ताड़े -
आ जाती पहलु मेरे। 
:
:
:
.......शेष कल 




उमेश चंद्र श्रीवास्ताव- 

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