अधिकारों की जंग शुरू है ,
सत्ता के गलियारों में।
कोई मांगता हक़ -हकुक़ तो ,
कोई को रुतबा प्यारा है।
सरफ़रोशी की अब बातें ,
पढो किताबों में भाई।
सत्ता धरी चढ़ा-चढ़ा कर ,
बस क़ुर्बानी मांगे हैं।
अपना कुनबा सुखी रहे सब,
जनता मरे-खपे जी भर।
उसको मुआवजा दे-देकर के ,
अपना पीठ बजाते हैं।
ऐसा भी योद्धा क्या तुमने ?
रणभूमि में देखा है।
दूजे को ललकार कहे वह ,
अपना सुविधा से पोषित।
अपने लिए है नीति दूसरी ,
जनता को भरमाना बस।
मानों,प्यारे अब भी मानों,
सुधरो कुछ व्यवहारों में।
जो भी करो ,वही तुम बोलो ,
तभी काम चल पायेगा।
वरना आए वीर धुरंधर ,
कितने ही इस जगती पर।
ठहरा वही यहाँ पर ,वह ही ,
जिसने संयत बात कही।
मेरा तुमको भी सुझाव है ,
कहो वही ,जो खुद भी करो।
वरना नाहक मत भरमाओ ,
भागो ,चलो यहाँ से तुम।
सत्ता के गलियारों में।
कोई मांगता हक़ -हकुक़ तो ,
कोई को रुतबा प्यारा है।
सरफ़रोशी की अब बातें ,
पढो किताबों में भाई।
सत्ता धरी चढ़ा-चढ़ा कर ,
बस क़ुर्बानी मांगे हैं।
अपना कुनबा सुखी रहे सब,
जनता मरे-खपे जी भर।
उसको मुआवजा दे-देकर के ,
अपना पीठ बजाते हैं।
ऐसा भी योद्धा क्या तुमने ?
रणभूमि में देखा है।
दूजे को ललकार कहे वह ,
अपना सुविधा से पोषित।
अपने लिए है नीति दूसरी ,
जनता को भरमाना बस।
मानों,प्यारे अब भी मानों,
सुधरो कुछ व्यवहारों में।
जो भी करो ,वही तुम बोलो ,
तभी काम चल पायेगा।
वरना आए वीर धुरंधर ,
कितने ही इस जगती पर।
ठहरा वही यहाँ पर ,वह ही ,
जिसने संयत बात कही।
मेरा तुमको भी सुझाव है ,
कहो वही ,जो खुद भी करो।
वरना नाहक मत भरमाओ ,
भागो ,चलो यहाँ से तुम।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
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