रणबांकुरों कहानी आयी ,
जरा विचारो मन भीतर।
भाव जगा कर बोल रहे वो,
छूमन्तर कुछ दिन में है।
बाँकुर कब तक भूल-भुलैया में ,
भरमोगे ,भरमाते हैं।
पतानहीं वह कौन शास्त्री ,
अर्थ की गणना कर रखा।
जाने-माने तो कहते हैं ,
उसे सुना 'औ' पढ़ देखा।
अब बांकुरों तुम ही समझो ,
वो करना क्या चाह रहे ?
भरमाने 'औ' भ्रम में रहना ,
बाँकुर अब तो ठीक नही।
लेकिन क्या तुम कर पाओगे ,
बहुमत में वो बन बैठे।
इसीलिए तो उनने बाँकुर ,
सबका केन्द्रीकरण किया।
न वित्त ,न आरबीआई ,
उनने खुद अधिकार लिया।
अब तो बात संसद से हट कर ,
पब्लिक से वे करते हैं।
कितने लोग चले गए हैं ,
लाइन में लग कर देखा तुमने।
उनके ऊपर श्रद्धा से उनने ,
न कोई न बात कही।
हमें बताते हैं सैनिक वह ,
पर कोई सम्मान नहीं।
कहते हैं छूमंतर होगा ,
पचास दिन इन्तजार करो।
फिर घर बैठे पहले जैसा ,
मुस्काओ 'औ' मन धरो।
जरा विचारो मन भीतर।
भाव जगा कर बोल रहे वो,
छूमन्तर कुछ दिन में है।
बाँकुर कब तक भूल-भुलैया में ,
भरमोगे ,भरमाते हैं।
पतानहीं वह कौन शास्त्री ,
अर्थ की गणना कर रखा।
जाने-माने तो कहते हैं ,
उसे सुना 'औ' पढ़ देखा।
अब बांकुरों तुम ही समझो ,
वो करना क्या चाह रहे ?
भरमाने 'औ' भ्रम में रहना ,
बाँकुर अब तो ठीक नही।
लेकिन क्या तुम कर पाओगे ,
बहुमत में वो बन बैठे।
इसीलिए तो उनने बाँकुर ,
सबका केन्द्रीकरण किया।
न वित्त ,न आरबीआई ,
उनने खुद अधिकार लिया।
अब तो बात संसद से हट कर ,
पब्लिक से वे करते हैं।
कितने लोग चले गए हैं ,
लाइन में लग कर देखा तुमने।
उनके ऊपर श्रद्धा से उनने ,
न कोई न बात कही।
हमें बताते हैं सैनिक वह ,
पर कोई सम्मान नहीं।
कहते हैं छूमंतर होगा ,
पचास दिन इन्तजार करो।
फिर घर बैठे पहले जैसा ,
मुस्काओ 'औ' मन धरो।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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