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Tuesday, December 20, 2016

जब-जब याद तुम्हारी आती-2

जब-जब याद तुम्हारी आती ,
तब-तब कविता लिखता हूँ।  

वर्णन करना बहुत-बहुत है ,
पर जो यादें आती हैं। 
उन्हीं बात को बिम्ब बना कर ,
हँसता 'औ' मुस्काता हूँ। 

कविता तो बोझिलता हरती ,
मन को तरंगित कर जाती। 
तन के सारे पोर-पोर में ,
रस सुखद ही भर जाती। 

थका-थका तन-मन जब रहता ,
तब तुम थोड़ा मुस्काती। 
आती हो यादों की बेल बन ,
मन को हर्षित कर जाती। 

वही तुम्हारा रूप याद है ,
वही तुम्हारी बातें भी। 
वही तुम्हारी साँस याद है ,
वहीं तुम्हरी रातें भी। 

याद ,सभी कुछ याद-वाद है ,
पर तुमसे न कोई विवाद ?
करके भी कर लूँगा क्या मैं ?
बस केवल तनहा संवाद। 


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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