बात पते की कहना चाहूँ ,
मगर सुनेगा कौन यहाँ ?
सबको पैसा-पैसा प्यारा ,
कौन गुनेगा बात यहाँ।
सुबह शाम 'औ' रात दुपहरी ,
पैसों की तो माया है।
भला बताओ ऐसे जग में ,
कैशलेस की क्या छाया ?
क्या होगा, कैसे होगा ?
यह तो छूमन्तर ही जाने।
बड़े-बड़े सब बोल रहे हैं ,
व्यवस्था की कमी बहुत।
ऐसे में कैसे होगा ,
कैशलेस का मायाजाल।
इधर विशेषज्ञ बहुत कहेंगे ,
उधर कर्मचारी की कमी।
ऐसे में तो समझ परे है ,
बात कहाँ से शुरू करूँ।
कल्पलोक में जीवन जीना ,
भाता सबको मगर सही।
जीवन की व्यावहारिक बातें ,
आके मिलती जमीं -जमीं।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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