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Saturday, January 21, 2017

कुछ समझौते करने पड़ते -3

जिनको सत्य बताना था वो ,
मुहकी मार चले ,जा बैठे। 
हृदयों को आघात मिला है ,
पर दुनिया तो चलती ऐसे। 

कुछ कहना ,कुछ भी सुनना क्या ?
अब आदत में धरना होगा। 
बड़े मुखौटे इधर-उधर से ,
बहु बातें ,कह अब जाते हैं। 

वह तो फंसा परिंदा ठहरा ,
अब तो उसको सुनना होगा। 
जीवन की उस चक्र धुरी तक ,
आहत रहके जीना होगा। 

बैठे बहुत हितैषी अब भी ,
कहते हैं हम साथ-साथ हैं। 
मगर वक्त पर मुकरे लगते ,
ऐसे में वे कैसे अपने। 

बात यहीं पर ,अब रुकता हूँ ,
दुनियावी बातें सुनता हूँ। 
सत्य आवरण  खोलेगा ही ,
तब निर्णायक आहत होंगे। 

निर्णय देना सरल काम है !
यह निर्णय दाता ही जाने। 
थोड़ा कुछ तो भरम हुआ था ,
लेकिन अब निष्ठा है उनपर। 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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