जिनको सत्य बताना था वो ,
मुहकी मार चले ,जा बैठे।
हृदयों को आघात मिला है ,
पर दुनिया तो चलती ऐसे।
कुछ कहना ,कुछ भी सुनना क्या ?
अब आदत में धरना होगा।
बड़े मुखौटे इधर-उधर से ,
बहु बातें ,कह अब जाते हैं।
वह तो फंसा परिंदा ठहरा ,
अब तो उसको सुनना होगा।
जीवन की उस चक्र धुरी तक ,
आहत रहके जीना होगा।
बैठे बहुत हितैषी अब भी ,
कहते हैं हम साथ-साथ हैं।
मगर वक्त पर मुकरे लगते ,
ऐसे में वे कैसे अपने।
बात यहीं पर ,अब रुकता हूँ ,
दुनियावी बातें सुनता हूँ।
सत्य आवरण खोलेगा ही ,
तब निर्णायक आहत होंगे।
निर्णय देना सरल काम है !
यह निर्णय दाता ही जाने।
थोड़ा कुछ तो भरम हुआ था ,
लेकिन अब निष्ठा है उनपर।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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