तुम कहानी कहो-हम सुने रात भर,
उसमे सच्ची ही बातें ,प्रमाणित रहें।
कुछ रवानी रहे, कुछ रहे स्वप्न भी ,
क्योकि जीवन भी चलता इसी छोर पर।
उसमें नगमें भी हों 'औ' वफाई भी हो ,
वैसे जग में सच्चाई का ही मोल है।
सब तो बातें करें ,काम निज मन का ही ,
इस तरह के तो जीवन का क्या फायदा ?
सब रहे कायदा ,कुछ न हो फायदा ,
तो बताओ रहा फिर यहाँ मोल क्या?
वह जो स्वामी रहे ,धर्म की बात पर,
पूरा जीवन ही अपना खपा कर दिया।
हम तो गृहणी बने ,अब तुम्हीं कुछ कहो ,
मेरे गृहणी का मोल करो कुछ ज़रा।
बात सच है मगर ,कुछ इधर भी करो ,
पास आते नहीं , दूर से बस कहा-
तुम तो प्रियतम हमारे -हमी तुम तो हैं।
ऐसी बातों का उसमें सहजपन भी हो।
एक रानी रही ,एक राजा रहा,
यह कहानी तो सदियों पुरानी हुई।
कुछ नई ही कहानी ,सुनाओ जरा ,
जिसमें दुष्यंत भी हों 'औ' शकुंतला भी हो।
राम-सीता रमे, कृष्ण-राधा जमे ,
बात मीरा की केवल निशानी न हो।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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